छत्तीसगढ़ शिक्षा व्यवस्था में गहरा संकट
छत्तीसगढ़ में शिक्षा का हाल बेहद खराब है। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन सच हैं। प्रदेश में नई शिक्षा नीति लागू करने की तैयारी चल रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। बुनियादी ढांचे की कमी, शिक्षकों की भारी भरकम कमी और विभिन्न संवर्गों में शिक्षकों के बीच भेदभाव ने शिक्षा के स्तर को गिरफ्तार कर रखा है।
बस्तर संभाग की स्थिति और भी दयनीय है। यहां हजारों स्कूलों में शिक्षक ही नहीं हैं। कई स्कूल तो भवन विहीन हैं। आत्मानंद स्कूलों की भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। शिक्षकों की कमी और स्थायी नीति के अभाव ने इन स्कूलों की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
एक ओर जहां सरकार नई शिक्षा नीति की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षकों के तीन अलग-अलग संवर्ग हैं, जिनके भर्ती और पदोन्नति के नियम अलग-अलग हैं। इससे शिक्षकों में असंतोष व्याप्त है। टी संवर्ग के शिक्षकों की पदोन्नति तो पिछले डेढ़ दशक से अटकी पड़ी है।
प्राचार्यों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। हजारों स्कूल ऐसे हैं जहां प्रधानाचार्य का पद खाली पड़ा है। कई स्कूलों में तो संविदा शिक्षकों को प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इससे स्कूलों का नेतृत्व प्रभावित हो रहा है।
इन सबके बीच सबसे ज्यादा नुकसान छात्रों का हो रहा है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना देखना तो दूर, बुनियादी शिक्षा भी मुश्किल हो गई है। ऐसे में जरूरत है शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार की। शिक्षकों की भर्ती में तेजी लाने के साथ ही उनके कल्याण का भी ध्यान रखना होगा। बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के साथ ही शिक्षकों के संवर्गों में एकरूपता लाना भी जरूरी है। तभी छत्तीसगढ़ के बच्चे बेहतर भविष्य की उम्मीद कर सकेंगे।